बुधवार, 14 सितंबर 2016

गांव का विकास - हिंदी

हर कोई चाहता है की उसके गांव में जो समस्या है,वह दूर हो जाए ताकि वह अपना जीवन ख़ुशी ख़ुशी बिता पाए | मित्रो आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में कोई किसी के लिए नहीं सोचता | बस हर कोई अपनी लाइफ को बेहतर से बेहतर बनाने की कोशिश में लगे रहते है |जीवन के हर मोड़ पर एक नया रास्ता हमे नजर आता है | उसी मार्ग से हमे गुजरना होता है,पर कुछ लोग समझ जाते है की रास्ते में कई रुकावट आएगी, पर मुझे अपनी मंजिल तक पहुँच ही जाना है | दोस्तों आज १४ सितम्बर का दिन है यानी की आप सभी जानते है आज विश्व हिंदी दिवस है | मुझे भी पता था जब मैं अपने दोस्तों से आज के विषय की चर्चा करने बैठा | मुझे ऐसा लग रहा था की हिंदी की चर्चा करने से क्या होगा |सब हिंदी जानते है | इसीलिए मैं नहीं चाहता था की आज हिंदी दिवस पर मैं हिंदी के बारे में कोई बात करु | मेरे सभी मित्र एक एक करके कहने लगे की विनोद जी आज इस मुद्दे पर चर्चा करते है | अधिकतर दोस्तों का विषय नशामुक्ति था | लेकिन दूसरे ही पल एक मित्र ने कहा की विनोद जी आज हिंदी दिवस है और नशामुक्ति की चर्चा तो हम अन्य किसी दिन भी कर सकते है | मेने भी अपने सभी दोस्तों को बोल दिया की चलो ठीक है फिर आप सभी कहते हो तो हम आज हिंदी दिवस की ही बात करते है | फिर क्या था शुरू हुई हिंदी दिवस की चर्चा | एक मित्र कहने लगा की विनोद जी हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है | आज हम अधिकतर हिंदी भाषा का उपयोग करके कई तरह के कार्यो को करते है | हम भले अपने घर में किसी अन्य भाषा का उपयोग करते हो पर हमसे मिलने वाले अधिकतर लोगो से हमारी बातचीत हिंदी भाषा में होती है |दोस्तों के कहने पर मेने आज का विषय हिंदी तो रख दिया पर सभी के लिए हिंदी दिवस कब शुरू हुआ ? किसने शुरू किया ?क्यों मनाते है ? कैसे इसका महत्व बढ़ाया जाए |क्यों जरुरी है हिंदी हमारे लिए  इन सभी बिंदुयो पर चर्चा नहीं करनी मेने अपने दोस्तों से ये भी कहा | ये सुनकर सभी दोस्त एक साथ बोलने लगे की विनोद भाई फिर हम हिंदी दिवस की क्या बात करेंगे | मेने अपने सभी दोस्तों को कहा की मैं एक सवाल पूछता हूँ उसका आप जवाब दीजियेगा |सभी कहने लगे ठीक है पूछो क्या पूछना चाहते हो | मेने सभी से कहा की देखो हम सब युवा है,और हम रोज रोज एक मुद्दे पर चर्चा इसलिए करते है की हम अपने समाज को देश को और गांव में जो विकास नहीं हो रहा है वह कर सके | और हम हररोज होने वाली इस चर्चा से बहुत कुछ सीखते भी है | मेरा सवाल ये है की क्या हिंदी हमारे गांव की समस्या हल कर सकती है ? क्या हिंदी हमारे गांव के विकास के लिए कोई कदम उठाने में सहयोगी बन सकती है | कई दोस्त कहने लगे की हिंदी अगर हर कोई व्यक्ति सिख जाए तो विकास संभव है | किसी ने कहा की गांव के लोगो को हिंदी सिखाई जाए तो विकास होगा | जो मुझे कह रहे थे की आज हर कोई हिंदी जानता है | स्कूल में भी हिंदी पढाई जाती है,बच्चे भी हिंदी सीख रहे है |मेने कहा की आप सभी का कहना ठीक है पर हिंदी हमारे गांव का विकास कैसे करेगी ? सब चुप थे हर कोई कुछ न कुछ कहकर बस हिंदी की महिमा करने में लगा था | तभी मुझे लगा की अब वैसे भी समय काफी हो चूका है | ऐसा सोचकर मेने अपने सभी दोस्तों को मेरे सवाल का जवाब दे दिया | मेने कहा दोस्तों हमारे भारत देश के अधिकतर राज्य हिंदी भाषी क्षेत्र है | इन राज्यो में रहने वाले काफी लोग हिंदी जानते है | हिंदी का उपयोग करते है | पर कैसे ये हिंदी मेरे गांव का विकास करे और कैसे समस्या का समाधान करे तो अगर मैं अपनी समस्या के बारे में हिंदी में लिखकर इन सभी राज्यो को भेजू | सभी अधिकारियो को भी कोई एक व्यक्ति अगर हिंदी में उन सभी समस्याओ से अवगत करवाये तो भी तो इन समस्याओ का समाधान हो सकता है |और ये सबकुछ कई जगह पर कुछ युवा और कई जागरूक लोग कर भी रहे है |इस तरह हम अपने गांव का विकास हिंदी के जरिये कर सकते है | वैसे सवाल बहुत साधारण था | लेकिन हमे बहुत कुछ कह रहा है | अंत में बस यही कहना है की हिंदी का उपयोग कर गांव का विकास जरूर करे | हिंदी सबकुछ कर सकती है,आप बस उसका उपयोग करो |

मंगलवार, 13 सितंबर 2016

प्यार का दूसरा नाम परिवार


प्यार एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में हर कोई व्यक्ति बहुत कुछ सोचता है | बहुत से लोग कहते है की प्यार का होना ही हमारे जीवन का होना माना जाता है | बिना प्यार की जिंदगी कुछ भी नहीं होती जैसे जेब में नॉट नहीं तो कुछ भी नही की तरह | वैसे हर कोई प्यार के बारे में जो सोचता है वो उनके अनुरूप सही है | क्योंकि कोई गलत नही होता और कोई सही नहीं होता,परन्तु बिना हार के जीत भी तो नही होती | जब भी अपने दोस्तों से में किसी मुद्दे पर या किसी विषय पर चर्चा करता हूँ,तो कई तरह के अच्छे और बुरे दोनों विचार मुझे जानने को मिलते है | इस बार जब मैं प्यार के बारे में अपने दोस्तों से चर्चा कर रहा था तो मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा की विनोद जी आज प्यार का मतलब केवल मतलब रह गया है लोग स्वार्थ का प्यार देखते है जहा पैसा वहाँ प्यार जहा पैसा नही वहाँ प्यार भी नहीं | और साथ ही आज के युवा पीढ़ी की तो बात ही अलग हो गई है उन्हें माता पिता का प्यार भाई बहन का प्यार नहीं दिखता केवल और केवल अपनी दोस्त का प्यार दिखता है | वो घर वालो से जितनी बात नही करेगा उससे कही ज्यादा बात अपने एक ही दोस्त से करता है | यह हमारे समाज की संस्कृति नही है | मेने उनसे पूछा की इसमें बदलाव कैसे किया जा सकता है |उन्होंने कहा की हमे आजके बच्चो को संस्कार देने होंगे | मुझे भी लगा की मेरे मित्र सही कह रहे है की आज के समय में हमे हमारे युवा पीढ़ी में जो संस्कार या अच्छे गुण नहीं है उसे डालने की जरुरत है |
एक मित्र ने कहा की विनोद भाई प्यार मोहब्बत की बात करने से क्या होगा | आपको शिक्षा के बारे में बात करनी चाहिए | आज जो शिक्षक छोटी कक्षा में पढ़ाते है वे ज्यादा मेहनत करते है पर उन्हें कम पगार और जो बड़ी कक्षायों को पढ़ाते है पर पढ़ाते बहुत कम और मेहनत भी ज्यादा नही करते उन्हें ज्यादा पगार | ये सिस्टम बदलना चाहिए | मेने उनसे कहा आपके अनुसार अगर ये समस्या है तो इसका समाधान कौन करेगा | उन्होंने कहा हम | मेने पूछा हम से क्या मतलब है आपका? कौनसी उम्र के लोग ? कहने लगे आज के युवा | फिर मेने उन्हें कहा की आज का युवा अधिकतर इन सब मामलो के बजाय स्वार्थ के प्यार में पड़ा हुआ है | और प्यार का सही अर्थ भी नहीं जानता | तो वो कैसे ये सबकुछ बदलेगा | फिर मेने कहा की मैं इसीलिए इस विषय पर चर्चा कर रहा हूँ की आजका युवा सच्चे प्यार को समझे और जो करने की जरुरत है उसे करे |
एक और दोस्त कहने लगा प्यार का कभी अंत नहीं होता | निस्वार्थ भाव का प्यार तो मीरा और राधा का था जिसे आज भी हम जब भी प्यार की बात करते है तो याद करते है | मेने इस दोस्त को पूछा ये बताओ क्या प्यार समाज को बदल सकता है इस दोस्त ने कहा हां जरूर बदल सकता है | मेने पूछा केस बदलेगा प्यार से समाज तो  कहने लगे की खुद से प्यार करके | ये बड़ी सोचने वाली बात लगी मुझे की कोई खुद को प्यार करके कैसे समाज को बदला सकता है | दोस्तों एक बात याद आ रही है आपने भी सुनी होगी की जो बदलाव आप समाज में देखना चाहते है वही बदलाव खुद बन जाइये समाज खुद बदल जायेगा |बस उसी तरह जब हम किसी से प्यार करते है तो उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते है | अगर हम अपने आप से प्यार करेंगे तो क्या हम अपने आपको नहीं बदलेंगे | बदलेंगे इसीलिए तो खुद से प्यार करना चाहिए |
प्यार की चर्चा में शामिल एक दोस्त कहने लगे की मेने तो आज तक किसी का प्यार नहीं हाशिल किया क्योंकि प्यार पाने के लिए पैसे की जरुरत होती है और दूसरा मन से प्यार किया जाए | दुनिया में ९०% लोग ऐसे होंगे जो पैसे  के बलभूते अपने प्यार को जिन्दा रखे हुए है बिना पैसे के हम किसी की जरुरत को नहीं पूरा कर सकते  | इसीलिए प्यार को पाने के लिए पैसे की जरुरत होती है १० % लोग ऐसे होंगे शायद जो की बिना पैसे की प्यार करते होंगे |
दोस्तों यहाँ पर अपने विचारो को पूर्ण करना चाहूंगा पर अंत में ये जरूर कहना चाहता हूँ की प्यार का दूसरा नाम परिवार है | जब आप अपने परिवार को समय देते है तो आप प्यार के सही अर्थ को समझने लगते है | आपको आपके पापा का आपके प्रति प्यार देखने को मिलता है | आपकी माँ का प्यार आप समझने लगते है | आपकी प्यारी बहन आपसे जो प्यार करती है | वही प्यार आप उससे करने लगते है | एक भाई अपने भाई से बहुत प्यार करता है पर जब तक वो एक दूसरे से मिलकर नहीं रहेंगे तब तक नहीं पता चलेगा भाई हमसे कितना प्यार करता है | जब आप पढ़ने के लिए हॉस्टल या बहार कही रूम पर रहकर पढाई कर रहे होते है तब आपको घर की परिस्थिति से दूर रखा जाता है लेकिन जब आप घर  जाते है तो बहुत कुछ पता चलता है | खास तौर पर आपके घर की परिस्थिति | तब आपको अहसास होता की मेरा परिवार मुझसे कितना प्रेम करता है | दोस्तों अगर आप भी अपने परिवार से दूर रहते है तो परिवार में रहके देखिये आपको सच्चा और पहला प्यार मिल जायेगा |
जब हम परिवार में जाते है तो परिवार को सुधारने की कोशिश करते है वही कोशिश हर कोई अपने अपने परिवार के लिए करने लगे तो देश सुधर जायेगा | 
उम्मीद करता हूँ आपको ये लेख पसन्द आया होगा | अपने सुझाव जरूर दे |

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

शादी का खर्च

शादी का खर्च 


१.डीजे सिस्टम से लोगो का अधिक पैसा खत्म होता है उसे बंद करना चाहिए |
२.जब दुल्हन को लेने बारात जाती है तो उस समय जब लेनदेन की बात होती है उसमे भी हर जगह अलग अलग लेनदेन हो रहा है जिसे अपने आदिवासी समाज में एक ही किया जाए | 
३.उसमे जो लेनदेन नहीं होना चाहिए वो भी होता है ,इसीलिए जो जरुरी है उसी लेनदेन को किया जाए | 
४.लेनदेन को आदिवासी भाषा में कोमले बेहवु कहते है |
५.लड़की का दापा दिन बी दिन बढ़ता जा रहा है उसे भी लोग कम करना चाहते है | 
दापा का मतलब है - शादी से पहले लड़के पक्ष के लोग लड़की पक्ष के परिवार को तय की हुई रकम अदा करते है जिसे दापा कहते है |

लोकाई में साडी ओढ़ाने की प्रथा


लोकाई में साडी ओढ़ाने की प्रथा

जब किसी पुरुष की मौत हो जाती है तब जब उसका बारमा तेरमा आदिवासी भाषा में (लोकाई ) की जाती है |उसमे जिस पुरुष की मौत हुई है उसकी पत्नी के साथ साथ गाँव की और महिलायो को भी साडी ओढ़ाने की परम्परा है | इसके साथ पुरुष वर्ग के लिए रूमाल लेने होते है | खर्च करीबन एक लोकाई में हजार के करीबन होता है | गाँव के अधिकतर लोग ये चाहते है की ये बंद होना चाहिए | केवल जिस महिला के पति की मौत हुई है उसे ही साड़ी केवल उसके परिवार के लोग ओढ़ाए बाकी के लोग उसके हाथ में अपने अनुसार थोड़ा सा पैसा दे दे ताकि उसके कभी काम में भी आये |

बाल विवाह बदलाव के कुछ बिंदु

बाल विवाह बदलाव के कुछ बिंदु 

१.हमारे समाज में बाल विावह की कमी नहीं हर साल कई बाल विवाह होते है | उसे रोकने वाला कोई नहीं,जो रोकेगा उलटी उसी पर मुसीबत आ जाएगी | इसीलिए इसके लिए कोई भी आगे नहीं आना चाहता | मगर इसके लिए समाज को आगे आने की जरुरत है | समाज खुद तय करे की हम अपने बेटे की शादी जब वो अपने आपको संभालने में सक्षम हो जाये तब और उसकी उम्र जब २१ हो जाये तब करेंगे और बेटी की शादी हम १८ वर्ष पुरे होने पर ही करेंगे |
२. हमारे समाज में कई लड़के और लड़कियां शादी नहीं करते और कुछ समय साथ रहते है जिससे उनका बच्चा भी हो जाता है | उन दोनों की उम्र कम होने से उन दोनों जीवन साथी का शरीर पूरी तरह कमजोर हो जाता है | और साथ ही उनका बच्चा भी कमजोर ही पैदा होता है |
ये घटनाएं घटने की वजह हमारे समाज का माहौल ही है | मुझे लगता है थोड़ा सा बदलाव हो तो हर किसी की जिंदगी संवर जायेगी |
समाज इसके लिए भी अपना खुद का नियम बनाए और उसे अमल में लाने की कोशिश करें |




जीमण प्रथा में बदलाव की जरुरत

जीमण प्रथा में बदलाव की जरुरत 

१.सबसे बड़ी बात ये है की रोटी केवल उन लोगो के लिए बनाई जाए जो मेहमान आते है और गाँव के लोगो के लिए लप्सी बनाई जाये लेकिन वो भी लोगो की मात्रा को देखकर | इसके साथ ही इस जीमण प्रथा में आने वाले मेहमान भी केवल पांच या सात ही हो |ताकि खर्च भी बच सके | साथ ही इस जीमण को सुबह १२ बजे तक समाप्त कर देना चाहिए ताकि बाकि के आधे दिन लोग अपना काम भी कर सकते है |

मौताणा - चढ़ोतरा में बदलाव की जरुरत

मौताणा - चढ़ोतरा में बदलाव की जरुरत 

१.डिलीवरी के समय अगर किसी महिला की मौत हो जाये तो पियर पक्ष ससुराल पक्ष से पैसे की मांग ना करे | कुदरती मौत का जिम्मेदार किसी को भी ठहराना गलत है |
२.जब किसी पुरुष की अचानक मौत हो जाती है और जिसकी जमीन या जिसके खेत में हो उसे जिम्मेदार ठहराना भी गलत है |
३.जब हमारा कोई व्यक्ति किसी के यहाँ मेहमान बनके जाए और उसकी मौत हो जाये तो जहां गया था मेहमान बनकर उनको इसका जिम्मेदार ठहराना गलत है |
४.जब कभी अचानक किसी की गाडी से एक्सीडेंट हो जाये तो जो गाडी वाला है उसे मारने के बजाय गाडी का जो बिमा किया हुआ है वो लिया जाये |
५.केवल किसी को शक के आधार पर उस गाँव के उस जाती समाज के सभी लोगो को परेशान करना कहा का न्याय है |
६.अगर किसी को पता भी चलता है की इस व्यक्ति ने ये गुनाह किया है तो केवल उसे सजा दे समाज क्यों आखिर पुरे गांव को इसके लिए अपना गाँव छोड़कर जाना पड़े |
७.जो व्यक्ति कोई गुनाह करता है तो उसे समाज से बहार किया जाये और साथ में दण्डित भी किया जाये |
८.किसी की मौत हो तो उसकी पूरी जाँच की जाए उसके बाद ही किसी को जिम्मेदार ठहराया जाये |

गुरुवार, 25 अगस्त 2016

शिक्षको की कमी को नहीं किया पूरा


24  जुलाई 2016

राजस्थान संपर्क समाधान में आदिवासी जागरूक युवा संगठन कोटड़ा से (विनोद) ने उदयपुर जिले की कोटड़ा तहसील की समस्त स्कूलों में शिक्षको के रिक्त स्थान भरने के लिए शिकायत दर्ज की थी  |

25 जुलाई 2016 

#अतिरिक्त #निदेशक #माध्यमिक #शिक्षा #राजस्थान #बीकानेर  ने जवाब दिया की (#विध्यालय में #रिक्त #पदों पर #अध्यापक लगाने का कार्य #डीपीसी एवं #राजस्थान #लोक #सेवा #आयोग से #चयनित आशार्थी उपलब्ध होने के बाद ही कार्यवाही की जानी संभव होगी. अतः #फिलहाल #प्रकरण का #निस्तारण करावे.)

#डीपीसी में #कॉल करके  (अशोक गुप्ता, पद - Sr.DS- Gr-2  ( 9509428649 )  इस नम्बर पर बात की  तो उन्होंने कहा की #राजथान में हर जगह सभी #विषयो के #शिक्षक लगा दिए जायेंगे | केवल 5 % बाकि रहेंगे वो केवल #अंग्रेजी के बाकि सभी जगह #एक #महीने में लग जाएंगे |

25 अगस्त 2016 

आज एक महीना पूरा हो गया है पर कोटड़ा क्षेत्र के स्कूलों में शिक्षको के रिक्तो स्थानों को भरा नहीं गया |अब आदिवासी जागरूक युवा संगठन कोटड़ा शुरू करेगा  

                                       "पत्र अभियान"

जिसके तहत हर अधिकारी तक पहुँचाये जायेंगे प्रार्थना पत्र |

29 अगस्त 2016  को कोटड़ा क्षेत्र के उपखंड अधिकारी को दिए जायेंगे 10-20 स्कूलों द्वारा स्कूलों में शिक्षको की मांग पूरी करवाने का पत्र |

ये दौर तबतक चलेगा जबतक इस समस्या का समाधान हो न जाये |  अधिक जानकारी के लिए संपर्क कर सकते है  9680476008

बुधवार, 17 अगस्त 2016


मुझे गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ - संध्या कुमारी


                             मुझे गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ

 " प्रकृति पूजक संस्कृति रक्षक आदि आनादिकाल वासी आदिवासी मूल वासी "

                                                        मैं आदिवासी समाज से प्रेम करती हूँ,मुझे गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ | मेरे आदिवासी समाज की संस्कृति अन्य समाजो से बिलकुल अलग है | और आदिवासी समाज की संस्कृति से अन्य समाजों ने कई रीती रिवाजों को अपनाया भी है |हर समाज का इतिहास प्राचीन होता है,और हर व्यक्ति को अपने समाज से प्रेम होता है |मुझे भी अपने आदिवासी समाज से लगाव है |पर जब मैं यह सब कुछ नहीं जानती थी, कि आदिवासी समाज क्या होता है ? तब कुछ भी नही समझती थी और मुझे खुद को या किसी ओर आदिवासी समाज के व्यक्ति को कोई आदिवासी कहता तो मुझे बुरा लगता था |

" भारत में सिर्फ आदिवासी है एक ऐसा समुदाय जो प्रकृतिमूलक है, जिस की जीवन प्रणाली बोली   परम्परा रिती-रिवाज ,पहनावा,संगीत-वाद्य, ज्ञान -कला संस्कृति व्यवहार आज भी सब से अलग है "

आज जब मैंने ये जाना की आदिवासी समुदाय इस धरा पर सबसे पहले से निवास कर रहा है |जब कोई भी नहीं था और अगर सबसे पुराना और प्राचीन समाज कोई है तो वो है आदिवासी समाज |आदिवासी समाज जितना पुराना है उतनी ही पुरानी इस समाज की संस्कृति है | जो की आज भी मेरे आदिवासी समाज में मुझे देखने को मिलती है | इतना ही नहीं बल्कि आज का युग जो की कई क्रांतियों से भरा पड़ा है,जैसे वैज्ञानिक क्रांति,श्वेत क्रांति,हरित क्रांति आदि | इसके बावजूद भी मेरा आदिवासी समाज हर रिवाज को पूरी तन्मयता के साथ निभाता आ रहा है |

 " हजारो-हजार साल का जिन्दा इतिहास हु में,मुझे आदिवासी कहते है,
 जैव विविधता को अपने में समेटे | कहते है मैं हजारो हजार साल एक साथ जीता हु,
आज मेरे बच्चे हजार साल पुरानी संस्कृति भी जीते है तो आज की आधुनिक संस्कृति भी "

मुझे गर्व है की मैं आदिवासी हूँ,क्योंकि मेरा आदिवासी समाज कभी किसी का गुलाम नहीं हुआ |मेरे समाज ने ही तो जो राजपूत क्षत्रिय थे उन्हें अपने क्षेत्र में पनाह दी,और उनकी उनके शत्रुयो से रक्षा की थी | आज भी अगर किसी कार्य को करना होता है तो सबसे पहले आदिवासी समुदाय को याद किया जाता है | हमारे भारत देश के कई कार्य जिसमे मकान बनाना,हमारे शहरो में बनने वाले कई तरह के भवनों के कार्य,खेती करने वाले लोग भी मेरे आदिवासी समाज के है |मेरे आदिवासी समाज के कई महान पुरुषो ने भारत की आज़ादी के लिए भी अपना योगदान दिया है लेकिन कही किताबो में मुझे उनके विषय में ज्यादा पढ़ने को नहीं मिला |मैं यहाँ दो उदाहरण देना चाहूंगी १.बांसवाड़ा के मानगढ धाम की घटना और २.सिरोही के भुला में लिलुडी बड़ली की घटना मुझे मेरे आदिवासी समाज के योगदान की याद दिलाता है |मैं इस बात से हमेशा खुश रहती हूँ की कुदरत ने मुझे आदिवासी समाज में जन्म दिया |

" मुझे गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ क्योंकि मैं इस धरती कि मूलवासी हूँ,मेरी अपनी संस्कृति है ,
 मेरी अपनी भाषा है हम किसी पर आश्रित नहीं है ,हमारा अपना वजूद है
आदिवासी न तो आस्तिक है, न तो नास्तिक है ,आदिवासी वास्तविक है "

एक बात जो मेरे मन के भीतर है वह यह कि मेरी तरह मेरे समाज के और भी कई युवा साथी जो कि अपने आपको आदिवासी कहने में शर्म महसूस करते है, वो इसीलिए क्योंकि वो आदिवासी का सही अर्थ एवम उसका अपना महत्व नहीं जानता |जब आज मैं आदिवासी होने पर गर्व कर रही हूँ तो मुझे आशा है कि मेरे आदिवासी समाज का हर व्यक्ति अपने आप पर गर्व करके कहेगा कि मैं आदिवासी हूँ |और मुझे भी इस बात पर गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ |

                                      '' चलती रहूंगी मैं पथ पर चलने मे माहिर बन जाऊँगी ,
                             मेरी अस्मिता को उजागर करुँगी मेरी संस्कृति का एक अंग बनूँगी "

विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष में आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम आये विद्यार्थी का निबंध
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मामेर
कोटड़ा तहसील, जिला उदयपुर, राजस्थान
नाम - संध्या कुमारी
कक्षा - 12th
विषय -  मुझे गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ     

शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन

रेडियो मधुबन 90.4 FM एंव आदिवासी जागरूक युवा संगठन कोटडा़ ने विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष में निबंध प्रतियोगिता

का आयोजन किया। विश्व आदिवासी दिवस आने वाली 9 अगस्त को हे।
ये दिन सयुक्तं राष्ट्र सघं द्वारा घोषित दिन हे जिसकी जानकारी स्वम आदिवासी समुदाय के लोगों को और स्कूल  में  पढने वाले बच्चो को नही थी। इस प्रतियोगिता के जरिये वो अपने आदिवासी दिन को जानने के साथ अपने आदिवासी होने पर गर्व करे इस उद्देश्य से रखी इस प्रतियोगिता का सफल आयोजन हुआ।
निबंध लेखन प्रतियोगिता में कोटडा तहसील की कुल 20 स्कूल के 250 विद्यार्थियों ने भाग लिया।
ये निबंध प्रतियोगिता स्कूल द्वारा स्कूल मे ही आयोजित की गई थी।
आज मनाया गया विश्व आदिवासी दिवस                   
स्थान - राजकीय महाविद्यालय कोटडा ( उदयपुर )राजस्थान विश्व आदिवासी दिवस पर निबंध लेखन प्रतियोगिता में चुने टोप 10 और तीन प्रथम,द्वितीय और तृतीय क्रम पर रहे विद्यार्थियों को किया सम्मानित
प्रथम - संध्या कुमारी – XII ( राजकीय उच्च माध्यमिक विदयालय मामेर)                   
द्वितीय- ललीता तराल - XI (राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विदयालय कोटडा)
तृतीय -लालूराम पारगी - XI (राजकीय उच्च माध्यमिक विदयालय महाद )

टोप टेन की सुची                
१.लालूराम पारगी (X) राजकीय उच्च माध्यमिक विदयालय मामेर                 
२.जमना कुमारी (XII) राजकीय उच्च माध्यमिक विदयालय महाद                
 ३. रेखा कुमारी (XII) राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विदयालय कोटडा
४.बंशीलाल गमार (XII) राजकीय उच्च माध्यमिक विदयालय महाडी             
 ५.रमेश कुमार (XI) राजकीय उच्च माध्यमिक विदयालय बडली               
६. ललीता कुमारी (XII) राजकीय उच्च माध्यमिक विदयालय महाद.                
७.रायचंद (XI) राजकीय उच्च माध्यमिक विदयालय महाद                
८.लीला कुमारी (XII) राजकीय उच्च माध्यमिक विदयालय महाडी              
९.चंदनलाल गमार (XII) राजकीय उच्च माध्यमिक विदयालय महाडी             
 १०.सुनीता ग्रासिया (XI) राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विदयालय कोटडा

कार्यक्रम के अतिथी रहे के.एल डिंडोर जी (प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय कोटडा)

शनिवार, 30 जनवरी 2016

मौताणा

मौताणा – ये एक आदिवासी समुदाय में चलने वाली परम्परा है | इस परंपरा में लाश के बदले पैसे की मांग की जाती है | जो पूरे उदयपुर संभाग में, खास तौर पर आदिवासी बाहुल्य जिलों-प्रतापगढ़, डूंगरपुर और बांसवाडा में बहुप्रचलित है। दुर्घटना में या अप्राकृतिक परिस्थितियों में मौत हो जाने पर सारी की सारी आदिवासी आबादी 'दोषी' या अपराधी का तब तक घेराव रखती है, जब तक उसके द्वारा नकद मुआवजे और सारे समुदाय के लिए देसी-दारू का इंतजाम नहीं कर दिया जाता | इस प्रक्रिया में दोनों पक्षों की तरफ़ से सौदेबाज़ी आम बात है। कई बार तो 'मौताणा' की रकम तय होने तक शव का अंतिम संस्कार तक नहीं किया जाता, भले इसमें कई कई घंटे लग जाएँ या कई दिन! जुर्माने की रकम कुछ सौ से कुछ लाख तक भी हो सकती है। आदिवासियों की 'जातिगत-पंचायत' ही बहुत बार छोटे-मोटे अपराधों का फैसला करती है और दोषियों पर जुर्माने ठोकती है, पुलिस-कचहरी का नंबर तो बाद में तब आता है, जब मामला जाति-पंचायत के हाथ से निकल जाय |
 
राजस्थान के आदिवासी इलाकों की परंपरा है मौताणा
राजस्थान के उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा क्षेत्र के आदिवासी इलाकों में हर साल सैकड़ों मामलों में मौताणे को लेकर सौदेबाजी सामने आती है। इसमें मृत्यु के लिए जिम्मेदार को मौत का मुवाजा मौताणा देना होता है। मौताणा की कुल राशि का दस फीसदी पंचों में, पच्चीस फीसदी पीड़ित परिवार और बाकी कुटुंब के सभी लोगों में बराबर बांटी जाती है। मौताणा देने के लिए भी देने वाले के परिवार के सभी लोग रकम इकठ्ठा करते हैं। इसमें भी परिवार की नजदीकी के हिसाब से हिस्सा तय होता है। जिस परिवार से मौताणा लिया जाता है, उसे पच्चीस फीसदी देना होता है और बाकी परिजन और रिश्तेदार मिलकर देते हैं।
मौताणा ना देने पर जबरन लेते हैं चढ़ोतरा
मौताणा नहीं देने पर चढ़ोतरा नाजिल किया जाता है। जिसके अनुसार संबंधित परिवारों के घर लूटे जाते हैं और बाद में आग लगा दी जाती है। चढ़ोतरा में केवल परिवार के पुरुषों के साथ ही मारपीट की जाती है। महिला सदस्य और परिवार के बाहर के लोगों के साथ मारपीट नहीं की जाती। इस बारे में फैसले के सारे अधिकार पंचों के पास होते हैं।इस परंपरा में बदलाव के लिए आदिवासी समुदाय को एकजुट होना होगा |युवा पीढ़ी को जागरूक किया जाये तो अच्छा बदलाव आ सकता है |
 
 
 
 
 
 
 
 
 

गुरुवार, 14 जनवरी 2016

आधार कार्ड योजना से परेशान आम जनता

भारत सरकार ने आधार कार्ड की जो योजना निकाली है वह बहुत अच्छी है,इससे हर व्यक्ति को अपनी पहचान मिलेगी चाहे वो छोटा हो या बड़ा | भारत के कई राज्यों में अधिकतर लोगो ने अपने आधार कार्ड बनवाये है |
कई लोग अपना आधार कार्ड अभी भी बनवा रहे है | राजस्थान राज्य के कई जिलो में लोगो ने अभी भी अपना आधार कार्ड नहीं बनवाया,इसकी वजह ये है की वो जहा रहते है वहा इ-मित्र सुविधा तो उपलब्ध है मगर आधार कार्ड मशीन नहीं है | जिनके पास आधार कार्ड नहीं है उन्हें राशन कार्ड पर मिलने वाली वास्तु भी बंद कर डी गई है | इसलिए हर व्यक्ति के लिए आधार कार्ड बनवाना जरुरी हो गया है | लोग अपना आधार कार्ड बनवाने के लिए पास के किसी शहर में जाते है जहा पर उनसे जो वहा इ-मित्र होते है वो 100 से 150 रूपये की मांग करते है | लोग अपनी खेती छोड़कर समय निकलकर आते है | कई बार तो आधार कार्ड बन जाता है कई बार नहीं भी बन पाता | आधार कार्ड निशुल्क बनता है | ये बात हर कोई नहीं जानता | सरकार ने ये जो योजना निकली है इसके लिए उचित व्यवस्था करनी होगी | सरकार की इस योजना की वजह से आम जनता अधिक परेशान हो रही है |
देश में जिस तरह पढने के लिए सरकारी और निजी स्कूल कोलेज है,इलाज के लिए जेसे सरकारी और निजी अस्पताल है उसी तरह आधार कार्ड के लिए इ-मित्र चल रहे है उन्हें बंद करवाना होगा |
अन्यथा जनता अभी जगी नहीं है जिस दिन जागी उस दिन तूफान आ सकता है |
जागरूक युवा होने के नाते मेरा फर्ज बनता है की मै देश के युवा साथियो को जागरूक सरकार के समस्त अधिकारियो से मेरा निवेदन है की जल्द ही इसके लिए उचित कदम उठाया जाये |
साथियो इस बात को हर अधिकारी और जिन्होंने इस योजना की शुरुआत की उन तक हमारी इस बात को पहुचाना होगा |
हर कोई इसे साझा करे और अन्य लोगो तक पहुचाये |
भारतीय जागरूक युवा संगठन – एक कदम बदलाव की ओर