काम वे छोटे गिने जाते है जो फूहड़पन और
बेसलीके से किये जाते हैं। यदि सावधानी,
सतर्कता और खूबसूरती के साथ, व्यवस्था पूर्वक
कोई काम किया जाय तो वही अच्छा,
बढ़ा और प्रशंसनीय बन जाता है।
चरखा कातना कुछ समय पूर्व विधवाओं और
बुढ़ियाओं का काम समझा जाता था, उसे करने
में सधवायें और युवतियाँ सकुचाती थी। पर
गाँधी जी ने जब चरखा कातना एक आदर्शवाद
के रूप में उपस्थित किया और वे उसे स्वयं कातने लगे
तो वही छोटा समझा जाने वाला काम
प्रतिष्ठित बन गया। चरखा कातने वाले
स्त्री पुरुषों को देश भक्त और
आदर्शवादी माना जाने लगा।
संसार में कोई काम छोटा नहीं। हर काम
का अपना महत्व है। पर उसे ही जब
लापरवाही और फूहड़पन के साथ
किया जाता है तो छोटा माना जाता है
और उसके करने
वाला भी छोटा गिना जाता है।