सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

छोटा और तुच्छ काम


काम वे छोटे गिने जाते है जो फूहड़पन और
बेसलीके से किये जाते हैं। यदि सावधानी,
सतर्कता और खूबसूरती के साथ, व्यवस्था पूर्वक
कोई काम किया जाय तो वही अच्छा,
बढ़ा और प्रशंसनीय बन जाता है।
चरखा कातना कुछ समय पूर्व विधवाओं और
बुढ़ियाओं का काम समझा जाता था, उसे करने
में सधवायें और युवतियाँ सकुचाती थी। पर
गाँधी जी ने जब चरखा कातना एक आदर्शवाद
के रूप में उपस्थित किया और वे उसे स्वयं कातने लगे
तो वही छोटा समझा जाने वाला काम
प्रतिष्ठित बन गया। चरखा कातने वाले
स्त्री पुरुषों को देश भक्त और
आदर्शवादी माना जाने लगा।
संसार में कोई काम छोटा नहीं। हर काम
का अपना महत्व है। पर उसे ही जब
लापरवाही और फूहड़पन के साथ
किया जाता है तो छोटा माना जाता है
और उसके करने
वाला भी छोटा गिना जाता है।

प्रेम

गृहस्थ जीवन की सफलता
गृहस्थ जीवन की सफलता के लिये, अनेक
कठिनाइयाँ होते हुये भी दाम्पत्य जीवन
को सुखमय बनाये रहने के लिये इस बात
की आवश्यकता है कि पति-पत्नि में प्रगाढ़ प्रेम
और अटूट विश्वास हो। इसी प्रकार जिस
कार्य में मनुष्य सफलता प्राप्त
करना चाहता है उसमें पूरा प्रेम होना और उस
कार्य के गौरव को समझना आवश्यक है।
जो कार्यक्रम अपनाया गया है उसे हलका,
ओछा, तुच्छ व्यर्थ और साधारण नहीं वरन् विश्व
का एक अत्यन्त आवश्यक और उपयोगी कार्य
मानना चाहिये। उसे करते हुये गर्व और गौरव
अनुभव किया जाना चाहिये दाम्पत्य प्रेम
की तरह हमें अपने कार्यक्रम में
भी पूरी निष्ठा, ममता अभिरुचि और
श्रेष्ठता भी रखनी चाहिये। यह भावनायें
जितनी ही गहरी होगी, कार्यक्रम
की सफलता में उतनी ही आशा बढ़ती जायेगी।

गुरु दीक्षा

एक महात्मा के पास तीन मित्र गुरु दीक्षा लेने
गये। महात्मा ने शिष्य बनाने से पूर्व
पात्रता की परीक्षा कर लेने के मन्तव्य से
पूछा बताओ कान और आँख में कितना अन्तर है?
एक ने उत्तर दिया-” केवल पाँच अंगुल का भगवान!
दूसरे ने उत्तर दिया- महाराज आँख देखती है और
केवल सुनते हैं इसलिये किसी बात
की प्रामाणिकता के विषय में आँख का महत्व
अधिक है।” तीसरे ने निवेदन किया -”भगवन्!
कान का महत्व आँख से अधिक है। आँख केव
लौकिक एवं दृश्यमान जगत को ही देख पाती है
किन्तु कान को पारलौकिक एवं पारमार्थिक
विषय का पान करने का सौभाग्य प्राप्त है।”
महात्मा ने तीसरे को अपने पास रोक लिया। पहले
दोनों को कर्म एवं उपासना का उपदेश देकर
अपनी विचारणा शक्ति बढ़ाने के लिए विदा कर
दिया। क्योंकि उनके सोचने की सीमा ब्रह्म तत्व
की परिधि में अभी प्रवेश कर सकने योग्य,
सूक्ष्म बनी न थी।

शनिवार, 18 अक्तूबर 2014

नियत कर्तव्यों का पालन
क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल
को जिस दिन फाँसी लगनी थी उस दिन सवेरे
जल्दी उठकर वे व्यायाम कर रहे थे। जेल वार्डन ने
पूछा आज तो आप को एक घंटे बाद फाँसी लगने
वाली है फिर व्यायाम करने से क्या लाभ?
उनने उत्तर दिया- जीवन आदर्शों और नियमों में
बँधा हुआ है जब तक शरीर में साँस चलती है तब तक
व्यवस्था में अन्तर आने देना उचित नहीं है।
थोड़ी सी अड़चन सामने आ जाने पर जो लोग
अपनी दिनचर्या और कार्य व्यवस्था को अस्त-
व्यस्त कर देते हैं उनको बिस्मिल जी मरते मरते
भी अपने आचरण द्वारा यह बता गये है कि समय
का पालन, नियमितता एवं धैर्य ऐसे गुण हैं
जिनका व्यक्तिक्रम प्राण जाने
जैसी स्थिति आने पर भी नहीं करना चाहिए।
अपने सुख के लिए दूसरों के दुःख नहीं
सेवा ग्राम में गाँधी जी के पास एक कुष्ठ
रोगी परचुरे शास्त्री रहते थे। उनके कुष्ठ रोग के
लिए किसी ने दवा बताई कि- एक
काला साँप लेकर हाँडी में बंद किया जाय
फिर उस हाँडी को कई घंटे उपलों की आग में
जलाया जाय। जब साँप की भस्म हो जाय
तो उसे शहद में मिलाकर खाने से कुष्ठ
अच्छा हो जायेगा। गाँधी जी ने पूछा-
‘क्या आप ऐसी दवा खाने को तैयार है?’
शास्त्री जी ने उत्तर दिया- बापू!
यदि साँप की जगह मुझे ही हांडी में बन्द करके
जला दिया जाय तो क्या हानि है? साँप ने
क्या अपराध किया है कि उसे इस प्रकार
जलाया जाय?
परचुरे शास्त्री की वाणी में उस दिन
मानवता की आत्मा बोली थी। वे लोग
जो पशु पक्षियों का माँस खाकर अपना माँस
बढ़ाना चाहते हैं, इस मानवता की पुकार
को यदि अपने बहरे कानों से सुन पाते
तो कितना अच्छा होता।