हजरत मूसा ने एक दिन ग्रीष्म ऋतु में एक बूढ़े गड़रिये को ईश्वर की प्रार्थना करते देखा-वह कह रहा था-हे परमात्मन्, मैं आपको ढूँढ़ पाता तो आपकी वैसी अच्छी सेवा करता। आपके बालों में कंघी करता, आपके जूते साफ करता, आपके कमरे में झाडू लगाता और नित्य अपनी बकरियों का दूध शहद डालकर पिलाता।”
यह सुनकर मूसा को बड़ा क्रोध आया और बड़े कटु शब्दों में उसकी भर्त्सना करते हुए कहा-मूर्ख जवान को बन्द कर, अल्लाह निराकार है उसकी शान में ऐसी बातें न कह जैसी इनसानों के लिए कहा जाता है।”
बेचारे गड़रिये की किस्मत टूट गई। उसका धर्मावेश नष्ट हो गया। अपनी अल्यक्षता पर उसने सिर धुन डाला और हतोत्साह होकर घर चला गया।
इस पर अल्लाह न मूसा से कहा-तूने मेरी प्रतिष्ठा की रक्षा करने के बहाने मेरे एक उपासक को दुखी कर क्यों भगा दिया? ऐ जल्दवाज! मैंने तुझे शिक्षा देने भेजा था। मुझे जो सबसे अधिक नापसन्द है वह है-बिलगाव और परित्याग। सबसे बुरी बात है किसी को बलपूर्वक किसी मार्ग पर चलवाना। मैंने सृष्टि इसलिए पैदा नहीं की कि उनसे अपनी प्रशंसा या प्रार्थना कराऊँ। वरन सृष्टि का उद्देश्य यह था कि जीव मुझसे मिलने की महत्ता को समझ सके। यदि कोई उपासक बचपन की ड़ड़ड़ड़ से प्रार्थना करे तो इसमें क्या हर्ज है? मैं तो केवल हृदय परखता हूँ कि उसमें कितना सच्चा प्रेम है।